हे….अभिमान.. !

कितने अच्छे हो..तुम..

धर्म निरपेक्ष.. सर्वव्यापी

कोई जाति, धर्म, देश

लिंग का भेद नहीं..,

चिरंजीवी..

सदियों से सदा के लिए..,

कहीं नुर, कहीं कुल.

कहीं मान..कहीं गुरूर..!

अल्प अतिथि..

थोड़े समय के मेहमान..,

अदाकार..

मौन मधुकर.. जब भी बोले

सर चढ़ कर बोले..

कभी झलके..

हमेशा छलके..!

और..

तुम्हें समझें बगैर..

ईश्वर तक पहुँचा कोई नहीं..!!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Solverwp- WordPress Theme and Plugin