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दर्प का अर्पण .. केसै हो . .? दर्पण..! ये दर्प भी तेरा… ये अहं..और वहम भी तेरा.. मंजिल..राह..कदम तेरे..,...
दर्प का अर्पण .. केसै हो . .? दर्पण..! ये दर्प भी तेरा… ये अहं..और वहम भी तेरा.. मंजिल..राह..कदम तेरे..,...
पुरुस्कार या सम्मान व्यक्ति का नहीं ..निहित ईश्वरीय तत्व (कला, योग्यता ) का होता हैं ..! निजी सम्पत्ति की तरह...
एक मित्र ऐसा जरूर हो.. जो हमारी ताकत और योग्यता का हमें अहसास कराता रहे..! और जब अति उत्साहित हो...
हे....अभिमान.. ! कितने अच्छे हो..तुम.. धर्म निरपेक्ष.. सर्वव्यापी कोई जाति, धर्म, देश लिंग का भेद नहीं.., चिरंजीवी.. सदियों से सदा...